ऐसी खूबसूरत शाम पहले कभी न थी
आज इस शाम को रोक लेने का मन है
ऐसा लगता है खूब बन-सँवर कर आई
दूर खड़े रहकर चुप देखते रहने का मन है
पहले कभी ध्यान से देखा नहीं इसका चेहरा
आज चेहरे से इक पल नज़र न हटाने का मन है
इसके ताम्बई रंग पर फिदा हो गए पंछी सारे
पंछी बन उड़कर दूर से निहारने का मन है
क्या कहूँ आज तबीयत भी खूब हुई शायराना
ऐसी शाम के रंग में रंग जाने का मन है
3 टिप्पणियां:
बहुत खूब
क्या कहूँ आज तबीयत भी खूब हुई शायराना
ऐसी शाम के रंग में रंग जाने का मन है
बिल्कुल रंगना भी चाहिए
आपकी सराहना के लिए आभारी हूँ वीना जी.
अच्छी ग़ज़ल। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
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