गुरुवार, 23 सितंबर 2010

खुश्क हवा तंग नमी फूल कैसे खिलें

सामने मुँह फेरे हुए हैं अपने देखो
गैरों से कहाँ किये जाते हैं गिले

सवाल नज़रों का है दूर-पास की
पहचान न पाए हम जब-जब मिले

दरख़्त साँस भी नहीं लेते अब तो
शाख जन्मों से स्थिर पल भर न हिले

उनके एहसास हो चले बे-परवाही के
खुश्क हवा तंग नमी फूल कैसे खिलें

वक़्त अपनी नजाकत पर परेशान सा
जख्म उनके दिए कहाँ जा कर सिलें