मैं बड़े ध्यान से देखता रहा तुम्हारा चेहरा
जाने क्यों तुम मुझे अक्खड़ दिखाई दिए
मैंने सोचा शायद चेहरे का ये दोष नहीं
दरअसल तुम मुझे बड़े मुच्छड़ दिखाई दिए
मैं फ़िदा हूँ उस जतन पर खूब सहेजी मूँछें
शेष पहनावे से तो बड़े फक्कड़ दिखाई दिए
तुम्हारी नज़र बचाकर जब नज़दीक आया
मूँछों में मुझे खिजाबी झक्कड़ दिखाई दिए
किस कदर मशगूल तुम ऊंची-नीची फेंकने में
आदमी कम मुझे लाल-बुझक्कड़ दिखाई दिये
13 टिप्पणियां:
हा हा हा, दूर के ढोल सुहावने ही होते हैं, इसलिये ’keep distance'
भाई सुनील कुमार जी,
हमें तो अभी खिजाब की जरुरत नहीं पड़ी है।
नजदीक और दूर से समान ही हैं।
हा हा हा हा
बहुत बढिया
आपका धन्यवाद "हमारी वाणी"
धन्यवाद "मो सम कौन" जी
अरे ललित जी, आपकी इनायत रहे, आभार.
धन्यवाद राजभाषा हिंदी जी
बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
मूंछों पर अच्छा लिखा है मिश्र जी, ब्लॉग जगत में मूंछ वाले के नाम से प्रसिद्ध ललित जी नें अपना स्पष्टीकरण छाप दिया है बाकी मूंछ वाले सावधान .... :) :)
आपकी शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ शिवम् जी.
वाह संजीव जी, मज़ा आ गया, शुक्रिया आपका.
हा हा हा तो मुछों वालों को अलग नज़र से देखा है आपने .....लेकिन हम तो एक बड़ी बड़ी मुछों वाले (हाजी अपने ललित भाईसाब ) को जानते है वो तो बड़े मस्त मोला इंसान है !
यहाँ भी पधारें ...
विरक्ति पथ
क्या बात है मिश्रजी वगैर मूंछ वाले भी उम्दा रचना लिखते हैं .... बढ़िया रचना .... आभार
मैंने सोचा शायद चेहरे का ये दोष नहीं
दरअसल तुम मुझे बड़े मुच्छड़ दिखाई दिए
हा हा!! मजेदार!
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