रविवार, 5 सितंबर 2010

सपने और सुवास

तुम खुली आँखों की सचाई
बंद आँखों का एहसास
दोनों ही ओर
बड़ी पास....

खुली आँखों से
तुम्हें देखना मगर
कुछ न कह पाना
बंद आँखों में
तुम्हारा नज़दीक आ जाना
बोलना-बताना
मिलकर गाने का जी करे
ऐसा कोई मीठा
गीत याद दिलाना

पास होने की अपनी नरमाई
सपने और सुवास
दोनों ही
बड़े खास....

10 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 7- 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

सुंदर निर्मल अभिव्यक्ति.

सुनील मिश्र ने कहा…

संगीता जी, प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभारी हूँ.

सुनील मिश्र ने कहा…

धन्यवाद अनामिका जी.

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... दोनो का अलग मज़ा है ... आँखें खुली हों या बंद ....

सुनील मिश्र ने कहा…

धन्यवाद सदा जी।

सुनील मिश्र ने कहा…

शुक्रिया दिगंबर जी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/270.html

yahan bhi apni post dekhen ..

सुनील मिश्र ने कहा…

अवश्य देखूँगा संगीता जी.