उन अंधेरों में दोबारा फिर नहीं जाना
स्याह ऊष्मा में एक पल भी न बिताना
ज़िंदगी के मोल एक बार और समझ लेना
अनजाने बियाबाँ से जोड़ना न रिश्ता पुराना
ऐसी ज़िद की न जाए खुद अपने से
जिस ज़िद में अवसाद कोई जागे सयाना
खूबसूरत रंगों की पहचान तुम्हें बखूबी है
चुने रंगों को फिर कभी दुख न पहुँचाना
बिन बताए दूर बहुत न जाओ ऐसे कि
मुश्किल हो जाए आवाज़ देकर वापस बुलाना
6 टिप्पणियां:
खूबसूरत रंगों की पहचान तुम्हें बखूबी है
चुने रंगों को फिर कभी दुख न पहुँचाना ।
बहुत सुंदर ।
आदरणीय आशा जी, आपका हार्दिक धन्यवाद.
बहुत खू़ब...।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-९) मूल्य सिद्धांत, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
धन्यवाद उत्तमराव जी.
धन्यवाद राजभाषा हिंदी जी.
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