मंगलवार, 21 सितंबर 2010

दुख न पहुँचाना

उन अंधेरों में दोबारा फिर नहीं जाना
स्याह ऊष्मा में एक पल भी न बिताना

ज़िंदगी के मोल एक बार और समझ लेना
अनजाने बियाबाँ से जोड़ना न रिश्ता पुराना

ऐसी ज़िद की न जाए खुद अपने से
जिस ज़िद में अवसाद कोई जागे सयाना

खूबसूरत रंगों की पहचान तुम्हें बखूबी है
चुने रंगों को फिर कभी दुख न पहुँचाना

बिन बताए दूर बहुत न जाओ ऐसे कि
मुश्किल हो जाए आवाज़ देकर वापस बुलाना

6 टिप्‍पणियां:

Asha Joglekar ने कहा…

खूबसूरत रंगों की पहचान तुम्हें बखूबी है
चुने रंगों को फिर कभी दुख न पहुँचाना ।
बहुत सुंदर ।

सुनील मिश्र ने कहा…

आदरणीय आशा जी, आपका हार्दिक धन्यवाद.

उत्‍तमराव क्षीरसागर ने कहा…

बहुत खू़ब...।

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
काव्य प्रयोजन (भाग-९) मूल्य सिद्धांत, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

सुनील मिश्र ने कहा…

धन्यवाद उत्तमराव जी.

सुनील मिश्र ने कहा…

धन्यवाद राजभाषा हिंदी जी.